अब जब ऑपरेशन सिंदूर को एक महीना पूरा होने आया है, उससे जुड़े कुछ निष्कर्षों को ठीक से समझ लेना जरूरी है। भारत की सेना ने पाकिस्तानी क्षेत्र में आतंकवादी ठिकानों और अन्य फेसिलिटीज पर जोरदार लेकिन ऐहतियाती और टारगेटेड हमला किया था। यहां तक कि आक्रमण का समय भी रात को इसलिए चुना गया ताकि नागरिकों को होने वाली क्षति से बचा जा सके। पाकिस्तान हाई-अलर्ट पर था, इसके बावजूद भारत ने सफलतापूर्वक उसकी डिफेंसिव-लाइंस को भेद दिया और अपने लक्ष्यों पर प्रहार करके कुछ आतंकवादियों का खात्मा करने में सफलता पाई। याद रहे कि इन आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में उच्च-स्तरीय पाकिस्तानी अधिकारी शामिल हुए थे। इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान से भारत के इंगेजमेंट्स की शर्तें हमेशा के लिए बदल गई हैं, क्योंकि अब भारत ने सैन्य-कार्रवाई को लेकर झिझक छोड़ दी है। एक अरसे तक कश्मीर मुद्दे के ‘अंतरराष्ट्रीयकरण’ के अंदेशे ने भारत को निरर्थक कूटनीतिक प्रक्रियाएं अपनाने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन उनसे हमें बहुत कम हासिल हो सका। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद प्रतिबंध समिति ने भी लंबे समय तक पाकिस्तान को अपने एक स्थायी सदस्य की छत्रछाया में रहने की अनुमति दी है। भारत अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को छोड़ नहीं रहा है, लेकिन अब वह केवल उसी पर निर्भर भी नहीं रहेगा। इसके बजाय, भारत अब आतंकवाद का सैन्य-बल से जवाब देगा और किसी भी जवाबी कार्रवाई का स्पष्ट और दृढ़ संकल्प के साथ सामना भी करेगा। लेकिन भारत पाकिस्तान को उसके परमाणु हथियारों की धौंस दिखाने की अनुमति नहीं देने वाला। 2016 में सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर 2019 में खैबर पख्तूनख्वा में हवाई हमले तक, भारत ने अपने अभियानों के दायरे का उत्तरोत्तर विस्तार किया है और ऐसा करते हुए नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा दोनों को लांघा है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के गढ़ में प्रहार किए गए। भारत ने दिखाया है कि आतंकवाद का मुकाबला परमाणु-युद्ध को आमंत्रित किए बिना भी एक संतुलित सैन्य-प्रतिक्रिया से किया जा सकता है। पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व अब जब भविष्य में कश्मीर या अन्य जगहों पर तबाही मचाने के लिए आतंकवादियों को भेजने पर विचार करेगा, तो पहले उसे खुद से पूछना होगा कि क्या वह भारत के जवाबी हमले के लिए भी तैयार है? उलटे इससे पाकिस्तान के लोगों को पानी की किल्लत हो सकती है। भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित करके यही संदेश दिया था। जहां उसके बाद से भारत ने जलप्रवाह को मोड़ने के लिए कोई इच्छा नहीं दिखाई है, लेकिन इस संदेश ने उपमहाद्वीप की भू-राजनीति को मौलिक रूप से बदल दिया है। भारत अब शांति के लिए बातचीत भर नहीं कर रहा है; वह पानी की निरंतर आपूर्ति के बदले में आतंकवाद की समाप्ति की मांग भी कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने दुनिया को यह भी याद दिलाया है कि पाकिस्तान के आतंकवाद से कितने गहरे ताल्लुक हैं। युद्ध विराम को अंजाम देने वाली परदे के पीछे की बातचीतों के बारे में नए विवरण निस्संदेह सामने आएंगे, लेकिन यह निर्विवाद है कि यह भारतीय सैन्य दबाव के बिना संभव नहीं था। इसके बाद अब निकट-भविष्य में भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों में कोई खास बदलाव होने की संभावना नहीं है, क्योंकि ऐसी कोई भी बातचीत- खासकर कश्मीर मुद्दे पर- फिलहाल दूर की संभावना है। वैसे भी कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का मूल कारण नहीं है, यह तो पाकिस्तान द्वारा भारतीय क्षेत्र पर अपने दावों को सही ठहराने के लिए फैलाया गया एक मिथक है। यह नैरेटिव एक ऐसे कट्टरपंथी तर्क पर आधारित है- जिसे हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने दोहराया था- कि मुसलमान गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देश में नहीं रह सकते। भारत व पाकिस्तान में कोई तुलना नहीं है। भारत की जीडीपी पाकिस्तान से 11 गुना अधिक है और उसकी सैन्य-श्रेष्ठता के आगे भी पाकिस्तान नहीं टिकता। पाकिस्तान में उसकी फौज को हासिल अत्यधिक अधिकार, राष्ट्रीय बजट पर नियंत्रण, चीन और तुर्किए के साथ रणनीतिक गठबंधन उसे सशस्त्र संघर्ष को बनाए रखने के लिए शक्तिशाली उपकरण प्रदान करते हैं, जबकि किसी भी पारंपरिक युद्ध में भारत हमेशा पाकिस्तान पर न केवल जीत हासिल करेगा, बल्कि उसे काफी नुकसान भी पहुंचा सकता है। भारत ने सीमापार आतंकवाद का सामना करने में जैसी दृढ़ता दिखाई, उस पर वह गर्व कर सकता है। अब भारत ने सैन्य-कार्रवाई को लेकर झिझक छोड़ दी है। एक अरसे तक कश्मीर मुद्दे के ‘अंतरराष्ट्रीयकरण’ के अंदेशे ने भारत को निरर्थक कूटनीतिक प्रक्रियाएं अपनाने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन उनसे हमें क्या हासिल हुआ? (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
ओपिनियन | दैनिक भास्कर