निर्जला एकादशी 6 जून को:मान्यता: साल की सबसे बड़ी एकादशी है निर्जला, पूरे दिन भूखे-प्यासे रहकर किया जाता है ये व्रत

शुक्रवार, 6 जून को निर्जला एकादशी है। इसे साल की सबसे बड़ी एकादशी माना जाता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व काफी अधिक है, क्योंकि ये व्रत तपस्या की तरह किया जाता है। अभी गर्मी चरम पर है और ऐसे समय में पूरे दिन भक्त भूखे-प्यासे रहते हैं, पानी भी नहीं पीते हैं और भगवान विष्णु की पूजा, मंत्र जप, ग्रंथों का अध्ययन करते हुए भक्ति करते हैं। मान्यता है कि जो भक्त विधि-विधान से निर्जला एकादशी का व्रत कर लेता है, उसे सालभर की सभी एकादशियों से मिलने वाला पुण्य एक व्रत से ही मिल जाता है। इस मान्यता के संबंध में पांडव पुत्र भीम से जुड़ी कथा प्रचलित है। ये व्रत भीम ने भी किया था, इस कारण इसका एक नाम भीमसेनी एकादशी भी है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, महाभारत के समय भीम को छोड़कर सभी पांडव सभी एकादशियों पर व्रत करते थे। भीमसेन के लिए भोजन के बिना रह पाना बहुत मुश्किल था। इस कारण वे एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। एक दिन भीम से वेदव्यास से पूछा कि कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे मुझे भी एकादशी व्रत का पुण्य मिल सके, मेरे लिए महीने में दो बार भूखे रहकर व्रत करना बहुत मुश्किल है। तब ऋषि व्यास ने भीम को सलाह दी कि यदि वे सभी एकादशियों का पुण्य एक साथ प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को बिना जल के उपवास करना चाहिए। भीमसेन ने सोचा कि साल में एक दिन तो भूखे-प्यासे रहकर व्रत-उपवास किया जा सकता है। इसके बाद भीम ने इस कठिन व्रत को किया था। भीम के व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। विष्णु ने भीम से कहा था कि जो भी भक्त श्रद्धा और विधि-विधान से ये व्रत करेगा, उसे सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा। संयम और भक्ति का प्रतीक है निर्जला एकादशी व्रत ये व्रत सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि भक्त पूरे दिन पानी भी नहीं पीते हैं। गर्मी के समय में पानी के बिना रहना बहुत मुश्किल होता है, इसी वजह से जो भक्त ये व्रत कर लेते हैं, उन्हें सभी 24 एकादशियों का पुण्य मिल जाता है। इस व्रत में संयम की परीक्षा होती है, भक्त किस तरह खुद पर संयम रखकर पूरे दिन निराहार और निर्जल रहकर भक्ति करता है। इसी वजह से ये व्रत संयम और भक्ति का प्रतीक है। ऐसे कर सकते हैं एकादशी व्रत जो लोग निर्जला एकादशी व्रत करना चाहते हैं, उन्हें दशमी तिथि (5 जून) की शाम को खाने में सात्विक आहार लेना चाहिए। जल्दी सोना चाहिए और सुबह सूर्योदय से पहले जागना चाहिए। स्नान के बाद उगते सूर्य को जल चढ़ाएं। घर के मंदिर में गणेश जी, भगवान विष्णु, महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करें। गणेश जी को दूर्वा और लड्डू चढ़ाएं। विष्णु-लक्ष्मी को पीले फूल, तुलसी दल, धूप-दीप आदि चढ़ाएं। भगवान के सामने निर्जला एकादशी का व्रत करने का संकल्प लें। पूरे दिन बिना अन्न और जल के रहें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और हरि नाम का जप करें। जरूरतमंदों को दान करें और भोजन कराएं। शाम को पूजा करें। रात में जल्दी शयन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर भी सुबह जल्दी जागें, स्नान आदि कामों के बाद पूजा करें। घर में सात्विक भोजन बनाएं और जरूरतमंद लोगों को भोजन खिलाएं, इसके बाद खुद भोजन करें। इस तरह एकादशी व्रत पूरा होता है।
जीवन मंत्र | दैनिक भास्कर

Author: admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *