एन. रघुरामन का कॉलम:रिश्तों का मुलाकातों की संख्या से कोई सम्बंध नहीं है

इस सप्ताह की शुरुआत में मुम्बई में तेज हवाओं के साथ भारी बारिश हुई, जिसने पूरे शहर को ठप कर दिया। चूंकि मेरा बिस्तर भी भीगने लगा था, इसलिए मुझे बेडरूम की खिड़कियां बंद करने को मजबूर होना पड़ा। जैसे ही मैं खिड़की बंद कर वापस मुड़ा, मैंने कुछ गिरने की आवाज सुनी। मैंने मुड़कर देखा। मेरी आंखें कोई भारी चीज तलाश रही थीं, जैसे पेड़ की टहनी या कुछ और, जो संभवत: मेरी खिड़की से टकराकर फुलवारी में गिर गई होगी। यह मेरी खिड़की के नीचे की वो जगह है, जहां हम कुछ छोटे गमले रखते हैं। लेकिन मैंने नीचे देखा तो पाया कि वहां पंखों का झुंड और पत्तियां बिखरी थीं। मैंने उसे उठाया। वह एक छोटा-सा, हल्का, भूरे रंग का पक्षी था। मैंने चारों ओर देखा तो पाया कि पेड़ की एक बड़ी टहनी टूटकर नीचे पड़ी थी। शायद उस पक्षी की मां खाने की तलाश में गई होगी और वह तेज हवाओं के खतरे से अनभिज्ञ होगा। शायद प्रकृति ही उस कोमल, नन्हे-से प्राणी को मेरे बिस्तर पर लाना चाह रही हो। इसी कारण से उसने इतनी तेज हवा चलाई कि वह उस नन्हे-से जीवन को मेरे नर्म बिस्तर पर ला सके। ये सब देख मुझे अपराध-बोध होने लगा और मैंने उस पक्षी की देखभाल करने का फैसला किया। उसके दिल की धड़कन तेज थी, जो और तेज होती चली गई और फिर धीरे-धीरे स्थिर हो गई। मुझे नहीं पता था कि उस पक्षी की सहायता कैसे की जाए। मुझे यह भी नहीं पता था कि क्या उसे ज्यादा चोट लगी है। पक्षी की काली आंखें कई बार झपकीं और फिर धीरे-से बंद हो गईं। लेकिन उस सर्द और नम सुबह में उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। मैं चाहता था कि वह पक्षी मुझसे बोले और मुझे बताए कि उसे क्या तकलीफ है। पक्षी के छोटे काले नाखून नुकीले थे और वे मेरी हथेली में चुभने लगे। मैंने मेज पर रसोई का साफ कपड़ा बिछाया और पक्षी को उस पर लेटा दिया। हमारे इलाके के समीप ही संजय गांधी नेशनल पार्क की बाउंड्री वॉल है, इसलिए मैं वहां वन्यजीव संगठनों के लिए काम करने वाले कुछ वॉलंटियर्स को भी जानता हूं। मैंने एक बचाव दल को टेक्स्ट किया कि ‘एक छोटा पक्षी हमारी खिड़की से टकरा गया है, मुझे क्या करना चाहिए?’ मेरा फोन घायल पक्षी के समीप ही रखा था। कुछ क्षण बाद ही फोन की आवाज सुनकर उसने अपना सिर उठाया और मेरी ओर देखा जैसे वह मुझसे कुछ कहना चाहता हो। उसके बिना एक शब्द बोले ही मैं समझ गया कि वो कहना चाहता था- मैं उड़ना चाहता हूं और यह सुंदर दुनिया देखना चाहता हूं, क्या तुम मेरी सहायता करोगे? इन शब्दों की कल्पना से ही मेरी आंखें भर आईं। फोन पर आए जवाबी संदेश में कहा गया कि क्या आप पक्षी को एक बॉक्स में रखकर हमारे पास ला सकते हैं? मैंने कहा, मैं नहीं ला सकता। मैं अपने एक दोस्त की सहायता के लिए अस्पताल जा रहा हूं, जहां वो अपने ​बीमार पिता की देखभाल के लिए अकेले हैं। तुरंत ही जवाब आया कि आप अपना पता भेजिए, हम एक वॉलंटियर भेजेने की कोशिश करेंगे। मैंने पता भेजा और अगले 15 मिनट में एक वाहन आकर बॉक्स को ले गया। उस दिन से मुझे नियमित तौर पर उस नन्हे पक्षी के बारे में अपडेट मिलते रहे हैं। उन्होंने पक्षी की चहचहाहट को रिकॉर्ड कर मेरे पास भेजा और कहा कि उसकी हालत में सुधार हो रहा है। वह तब से ही मेरी प्रार्थनाओं में शामिल रहा है। मैंने उस रिकॉर्डिंग को अपने म्यूजिक सिस्टम पर तेज आवाज में बजाया, यह सोचकर कि यदि उसकी मां अपने बच्चे को ढूंढ रही होगी तो यह ध्वनि उसे अपने बच्चे की सलामती के बारे में बता देगी। कई सारे पक्षी हमारी खिड़की पर रखा खाना खाने आते हैं। मैं सिर्फ आशा कर सकता हूं कि उनमें से एक उसकी मां भी होगी। अंतत: इस शनिवार को वह नन्हा-सा पक्षी जंगल में उड़ गया। और मैं आशा करता हूं कि वह अपनी मां से भी ​मिल पाएगा, क्योंकि जिस पेड़ पर उसका जन्म हुआ था, वो नेशनल पार्क से तीन किलोमीटर दक्षिण में है। फंडा यह है कि फंडा यह है कि रिश्ते घड़ी की सुइयों की तरह होते हैं। वे केवल चंद पलों के लिए ही मिलते हैं, लेकिन एक-दूसरे से हमेशा जुड़े रहते हैं।
ओपिनियन | दैनिक भास्कर

Author: admin

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